यह एक कष्टदायक रोग है, जिससे प्रतिवर्ष लाखो व्यक्तियों की म्रत्यु हो जाती है, इसमें अनियंत्रित कोशिका विभाजन के कारण अविभेदीत कोषिकाओं के समुह बन जाते है, ये कोशिकाएँ सामान्य कोषिकाओं का भोजन एवम् आँकसीजन को ग्रहण करती रहती है, इससे सामान्य कोशिकाएँ नष्ट हो जाती है, अविभेदीत कोषिकाओं के समुह या ट्यूमर दो प्राकार के होते है,
1.सुदम ट्यूमर= ये संयोजी उतक से घिरे होने के कारण एक निश्चित स्थान पर बने रह्ते है,
2.दुर्दम ट्यूमर= ये कोशिकाएँ रक्त एवम् लसिका के मध्यम से स्थान परिवर्तन करके अन्य स्थानों पर ट्यूमर बनातीं है, ईस प्राकार की कोषिकाओं द्वारा अन्य भागो मे फैलने को मेटास्टेसिस कह्ते है, ईन द्वितीयक दुर्दम ट्यूमर की वृद्धि को द्वितीयक या मेटाप्लास्टिक कैन्सर कह्ते है,
कैन्सर के प्राकार:
(1) कार्सिनोमा= जो कैन्सर एक्टोडर्म उदगम के उतको मे होता है, उसे कार्सिनोमा कह्ते है,
जैसे= स्तन कैन्सर ,फेफड़े का कैन्सर, त्वचा ,आमाशय आदि,
(2)सार्कोमा = जो कैन्सर मिसोड़र्म उदगम के उतको से होता है, उसे सार्कोमा
कह्ते है,
जैसे= अस्थि कैन्सर, लसिका गांठ का कैन्सर, संयोजी उतक का कैन्सर,
(3) लयूँकिमिया = यह रूधिर की कोषिकाओं का कैन्सर है, अस्थिमज्जा की कोषिकाओं मे अनियंत्रित विभाजन के कारण ल्युकोसाइट WBC की सख्या मे अत्याधिक वृद्धि होती है,
कैन्सर के कारण = कैन्सर शरीर की अपनी ही कोषिकाओं के अनियमित कोषिका विभाजन के कारण होता है, सभी कोषिकाओं मे प्रोटोअोंकोजीन होती है, किसी भी कारण से ये ओंकोजीन सक्रीय हो जाती है, तथा कैन्सर कोशिकाएँ उत्पन करने लगती है,
कैन्सर की जाँच=
कैन्सर की जाँच प्रतिविमबन तकनीक बायोपसी ,एंडोस्कोपी, रसायनिक परिक्षण् आदि द्वारा की जाती है, प्रतिबिमविन तकनीक मे एक्सरो ,सिटि स्कैन , एम्. अर. आई आदि भी है,
कैन्सर के लक्षण,
(1). घाव का ज़ल्दी ठीक ना होना,
(2). सरीर के किसी भाग पर गांठ का बानना,
(3). शारिर के किसी तिल या मस्से मे अचानक वृद्धि होना,
(4). सरीर के भार मे निरन्तर कमी होना,
(5) सरीर का हर समय थका थका रहना,
कैन्सर का उपचार =
(a) रसायनिक चिकित्सा या कीमोथेरेपी = इसके अंतरगत रसायनिक औषधी का प्रयोग किया जाता है, इनके सरीर पर कुछ हानिकारक प्रभाव भी होते है,
(b) शल्य चिकित्सा = इसमें कैन्सर ग्रस्त भाग को सरीर से अलग कर देते है, कैन्सर उपचार का प्रथम चरन अब भी शल्य क्रिया ही है,
(c) विकीरण चिकित्सा या रेडियोथेरेपी = इसमें कैन्सर कोषिकाओं को घातक विकीरण से नष्ट कर देती है, ईस कार्य हेतू एक्स- रे या रेडियो ऐक्टिविटि के अन्य स्त्रोत का प्रयोग किया जाता है,
(d) प्रतिरक्षा चिकित्सा = ४ इन्टरफेरान जैसे पदार्थ ज़ेविक अनुक्रिया रुपांतरकारी की भांति कार्य करते है,
You must be logged in to post a comment.