मित्रों नीचे कुछ रोचक विज्ञान के प्रश्नों पर उत्तर प्रस्तुत है।
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🌳पहले मुर्गी आई या अंडा।
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जीव विज्ञान के अनुसार जीवों का विकास क्रमिक रूप से हुआ है । मुर्गी और अंडे के विकास में लाखों वर्ष लगे है । मुर्गी और अंडे मे पहले कौन आया ? इस प्रश्न के कोई मायने नहीं है क्योंकि इन दोनो का विकास एक साथ एक क्रम मे हुआ है ।
🌳 तारे टूटते हुए क्यों दिखाई देते हैं।
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अन्तरिक्ष में अनेकों बड़ी - बड़ी रचनाएँ उपस्थित है जो पृथ्वी से अरबों किलोमीटर की दुरी पर स्थित है जिन्हें हम तारों के रूप में देखते है । जब वे बाहरी अन्तरिक्ष से वायुमंडल में प्रवेश करते है तो हवा की रगड़ से गर्म होकर चमकने लगते है ये उल्कायें भी कहलाती है अधिकांश उल्कायें वायुमंडल में पूरी तरह जल जाती हैं लेकिन कुछ बड़े उल्का पिण्ड पृथ्वी तक पहुँच जाते हैं उन्हें जब गिरता हुआ देखते है तो हम कहते है कि तारा टूट रहा है ।
🌳 मकड़ी खुद अपने जाल में क्यों नहीं चिपकती है।
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मकड़ी अपने शिकार को फंसाने के लिए जाल बुनती है । छोटे - छोटे कीड़े इस जाल में आसानी से फंस जाते हैं । इन कीड़ों का जाल से निकलना काफी मुश्किल होता है । लेकिन आपने कभी गौर से देखा होगा तो पाया होगा कि मकड़ी खुद उस जाल में एक - जगह से दूसरे जगह आसानी से घूम लेती है । क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों होता है ? मकड़ी का पूरा जाल चिपकने वाले नहीं होता है । वह इसका कुछ ही हिस्सा चिपचिपा बुनती है । वहीं , इसके अलावा वैसा हिस्सा जहां मकड़ी खुद आराम से रहती है , वह बिना चिपचिपे पदार्थ के बनाया जाता है । इसलिए वह आसानी से इसमें घूम लेती है । वैसे अपने ही जाल में फंसने से बचने के लिए मकड़ी एक और तरकीब निकालती है । वह रोजाना अपने पैर काफी अच्छे से साफ करती है ताकि इन पर लगी धूल और दूसरे कण निकल जाएं । कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मकड़ी का पैर तैलीय होता है इसलिए वह जाल में नहीं फंसती और इसमें घूमती रहती है । लेकिन सच यह है कि मकड़ियों के पास ऑयल ग्लैंड्स ( ग्रंथियां ) नहीं होते हैं । वहीं कुछ वैज्ञानिक इसकी वजह मकड़ी की टांगों पर मौजूद बालों को मानते हैं जिन पर जाले की चिपचिपाहट का कोई असर नहीं होता है
🌳 हमें जीभ से स्वाद का पता कैसे चलता है।
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जीभ हमें स्वाद का ज्ञान कराती है । जीभ मुँह के भीतर स्थित है । यह पीछे की ओर चौड़ी और आगे की ओर पतली होती है । यह मांसपेशियों की बनी होती है । इसका रंग लाल होता है । इसकी ऊपरी सतह को देखने पर हमें कुछ दानेदार उभार दिखाई देते हैं , जिन्हें स्वाद कलिकाएं कहते हैं । ये स्वाद कलिकाएं कोशिकाओं से बनी है । इनके ऊपरी सिरे से बाल के समान तंतु निकले होते हैं । ये स्वाद कलिकाएं चार प्रकार की होती है , जिनके द्वारा हमें चार प्रकार की मुख्य स्वादों का पता चलता है । मीठा , कड़वा , खट्टा और नमकीन । जीभ का आगे का भाग मीठे और नमकीन स्वाद का अनुभव कराता है । पीछे का भाग कड़वे स्वाद का और किनारे का भाग खट्टे स्वाद का अनुभव कराता है । जीभ का मध्य भाग किसी भी प्रकार के स्वाद का अनुभव नहीं कराता , क्योंकि इस स्थान पर स्वाद कलिकाएं प्रायः नहीं होती है । स्वाद का पता लगाने के लिए भोजन का कुछ अंश लार में घुल जाता है और स्वाद - कलिकाओं को सक्रिय कर देता है । खाद्य पदार्थों द्वारा भी एक रासायनिक क्रिया होती है , जिससे तंत्रिका आवेग पैदा हो जाते हैं । ये आवेग मस्तिष्क के स्वाद केंद्र तक पहुँचते हैं और स्वाद का अनुभव देने लगते हैं । इन्हीं आवेगों को पहचान कर हमारा मस्तिष्क हमें स्वाद का ज्ञान कराता है।
मित्रों विज्ञान में कई प्रश्न है, जिनके उत्तर उपस्थित हैं ,परंतु एक पोस्ट में सभी प्रश्नों का समाकलन संभव नहीं है, थोड़ा-थोड़ा हर पोस्ट में देने का प्रयत्न रहेगा, इसीलिए पोस्ट को फॉलो, लाइक करना ना भूले।
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