प्रेम क्या है? हालांकि इस सरल से सवाल का सटीक जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है।
प्रेम की परिभाषा नजरिए के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं। किसी के लिए खुदा द्वारा भेंट किया गया तोहफ़ा है प्रेम तो किसी के लिए एक गुनाह जिस की महज एकमात्र सजा है प्रेमी की याद में उम्र भर की कैद।
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पर प्रेम महज दो वितरित लिंग के प्राणियों के बीच का आकर्षण मात्र नहीं हो सकता। लालच और स्वार्थ से परे होकर रखी गई वह भावना जो व्यक्ति के मन में चंचलता पैदा करें ऐसी चंचलता जिस को शब्दों में बयां कर पाना उतना ही मुश्किल है, जितना कि आसान इसे वास्तविक जिंदगी में जी पाना।
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ख़ैर नजर और नजरिए के बदलने से प्रेम की परिभाषा भी बदल जाती हैं। हवा का चलना प्रेम है, पानी का बहना प्रेम है, पक्षियों का कलरव प्रेम है, बच्चों की मुस्कान प्रेम है, स्त्रियों की खूबसूरती प्रेम है, पुरुषों का त्याग प्रेम हैै, मां की वात्सल्यता प्रेम है, पिता की डांट प्रेम है, बहन का धागा प्रेम है, दादी नानी की लोरी प्रेम है, प्रेम एक बंधन न होकर एक खुला और विस्तृत विषय हैं।
प्रेम एक रंग नहीं, प्रेम एक सूरत नहीं, प्रेम एक शारीरिक बनावट नहीं, प्रेम एक जाति नहीं।
प्रेम एक घर में बसे, एक मोहल्ले में बसे एक जिले में, एक राज्य में या एक देश में यह जरूरी नहीं।प्रेम हवा के साथ बहता हुआ, पानी के साथ चलता हुआ एक शीतल भाव है।
प्रेम गुलाब में छिपा हो सकता है, प्रेम चॉकलेट में छुपा हो सकता है तो कहीं प्रेम महज़ एक बोसे में।
प्रेम एक उर्जा है इसे ना उत्पन्न किया जा सकता है ना नष्ट। प्रेम को ना खोजा जा सकता है, ना आविष्कृत किया जा सकता है। प्रेम को केवल अनुभव किया जा सकता है।
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प्रेम को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना कि सरल वास्तविक जीवन में इसे जी पाना!!
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