दिल्ली मेट्रो की डरावनी कहानी (Delhi metro horror storys)

Dehli metro 

यह बात आज से 3 साल के पहले की है। वेदांत को ऐसा प्रोजेक्ट मिला था। जो उसका पूरा करियर बना सकता था। ऐसा वजह से वह कई हफतो से ऑफिस में देर रात तक काम करता आ रहा था। अगर वेदांत ऑफिस के टाइम से निकलता तो वो घर जाने के लिए मेट्रो ट्रेन को पकड़ लेता वरना उस केब  लेनी पड़ती थी। उस दिन वेदांत की बद किस्मत थी कि उस सरद नवंबर रात को वो टाइम से निकला। और नोयाडा की तरफ़ जाती हुई। आखिरी मेट्रो ट्रेन चढ़ गया। जब वह स्टेशन पहुंचा तो ट्रेन के दरवाजे बंद हो रहे थे। मेट्रो की अनाउसमेंट स्टेशन के स्पीकर में बजी। और वो ट्रेन की तरफ़ तेजी से दौड़ा। ईतनी ज्यादा ठंड थी कि उसकी सास भाप के रूप में उसके रूप में निकल रही थी। भागते हुए वो सबसे पास वाले ढ़बे में आ गया। मेट्रो के दरवाजे उसके ढीक पीछे बंद हुए। और वो फड़फड़ा कर सामने वाली सीट पर जाकर बैठ गया। वेदांत की सास अभी फूल रही थी। की मेट्रो एक हल्के झतके से चली जाती। मेट्रो ने धीरे धीरे रफ्तार पकड़ी। और वेदांत ने नोटिस किया वहा सिर्फ वही था। पूरी ट्रेन में उसके अलावा और कोई पैसेंजर नहीं था। वेदांत रह देखा कर थोड़ा गबरा गया। पता यह क्यू पर वेदांत के दिल की धड़कने उस खाली  ट्रेन को देख कर तेज होने लगी। मेट्रो की एक ओर अनाउसमेंट   आई थी। अगला स्टेशन आ चुका था। ट्रेन के दरवाजे खुले और एक धिधी हवा डबे में घुस आई और वेदांत कपकापौड़ा लेकिन दाढ़ी की वजह से नहीं बल्कि जो वेदांत ने बाहर देखा उसकी वजह से पूरा स्टेशन खाली था। एक आदमी सिर्फ को सामने वाली कुर्सी पर बैठा था। वह अधेड़ उम्र का था। ओर उसने जिंश ओर जैकेट पहनी हुई थी। उसकी पीठ इतनी सीधी थी कि ऐसा लगा रहा था कि उसकी रीड की हड्डी की जगह कोई लोहे का सरिया हो। आंखे बाड कर वह आदमी कहीं दूर देखा रह था। जैसे किसी ने उसको चोका दिया हो। उसकी बड़ी बड़ी आंखें बहोत्त थी,वेदांत को डराने के लिए थी। पर को देखा कर वेदांत की रूह काप उड़ी वो थी उसकी मुस्करहट। एक कान से दूसरे कान तक खींची हुई। एक बेजान मुष्कान वो एक भयानक पुतले कि तरह बिना हिले डुले बस वही बैंदा हुआ था। ट्रेन के उस स्टेशन से निकले तक ही वो आदमी बिल्कुल भी नहीं हिला। यहां तक कि उसने अपनी पलकें तक नहीं झपकाई।  वेदांत की सास में सास आए। पर वेदांत ने अपना सर हिलाया और खुद पर हसने लगा। सोचा कि यह कोई डराने की बात नहीं थी कोई शायद शराब पीकर बैठ हुआ होगा। वेदांत यह सोच ही रहा था कि मेट्रो का अगला स्टेशन चला गया। स्पीकर से अनाउसमेंट आती थी। ओर स्टेशन कि लाइट दिखाने लगी। फिर ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकी दरवाजे खुले और इस बार तो वेदांत के होश उड़ गए। बूढ़ा आदमी वेदांत के ठीक सामने बैठा पर फिर से उसी बेज पर बैठा हुआ था। वहीं मुषकान वहीं बड़ी बड़ी आंखें लिए। ऐसा कैसे हो सकता था वो अगले स्टेशन पर इतनी जल्दी कैसे पहुंच सकता था। स्पीकर से फिर एक अनाउसमेंट हुई। पर वेदांत का उस पर कोई ध्यान नही था। उसी वक़्त यूसा आदमी की आंखे वेदांत पर गई। ओर वेदांत की आंखो से मिली। वेदांत का दिल उसकी झाती पर जोरो से धड़क रहा था जैसे कोई हतौड़ा मार रहा था। ट्रेन के दरवाजे बंद होते होते एक अरसा बीत गया। जैसे ही दरवाजे बंद हुई। वेदांत इंजन की तरफ जाने लगा। उसने सोचा की अगर ट्रेन में कोई पैसेंजर नहीं है तो कम से कम ड्राइवर के पास तो पहुंच सकता हूं। पर उसकी किस्मत खराब थी। उसके वहा तक पहोचने से पहले ही ट्रेन अपने अगले स्टेशन पर पहुंच गई थी। दरवाजे खुलने लगे,इस बार आदमी बेज पर बैठा नहीं था। बल्कि बेज के किनारे खड़ा था। वो अब भी वेदांत को घुर रहा था। एक बार फिर मेट्रो कि अनाउसमेंट आई। दरवाजे बंद होने लगे। इस बार वेदांत अगले स्टेशन से पहले ड्राइवर के कमपाद तक पहुंच गया। ओर लोहे कि उस दीवार पर जोर से अपने हाथ मरने लगा। वेदांत यह उम्मीद कर रहा था कि काश ड्राइवर उसकी आवाज सुन ले। लेकिन आमने से कोई जवाब नही आया। इतने में फिर अगला स्टेशन आ गया। दरवाजे खुले,ऊसा प्लेट फार्म की लाइटे धीमी थी। पूरी दिल्ली कोहरे से ठकी हुई थी। ऐसा बार वो आदमी वेदांत को कहीं नहीं दिखा। लेकिन फिर अचानक नहरे में रोशनी की तरफ आया ओर वेदांत की नजर उस पर गई। वेदांत अब काफी घबराह गया था। उस समझ नहीं आ रहा था कि ये उसके साथ ये क्या हो रहा है। वो बूढ़ा आदमी अभी भी अजीब तरीके से चलता हुआ वेदांत की तरफ आ रहा था। किसी नॉर्मल इंसान की तरफ नहीं एक कट पुतले कि तरह चल रहा था। एक ओर कदम उस ट्रेन में अन्दर ले आता। वेदांत का शरीर अकड़ लगा। घबराट में एक जोर कि चीख निकली। वेदांत ट्रेन में दूसरे कंपार्ट में भागने लगा। दरवाजे दोबारा बंद होने लगे। ओर वेदांत को ऐसा एहेसास हुआ कि वो अब ट्रेन में उस आदमी के साथ बंद हो चुका था। मेट्रो फिर एक बार झ्टके के साथ शुरू हुई। ओर वेदांत इस बार लड़खड़ा कर नीचे गिर गया। जब वेदांत ने उधने कि कोशिश की तो अपने पीछे कुछ ऐसा देखा जो आज तक उसकी यादाश में शपा हुआ है। ट्रेन जोरो से हिल रही थी। वो आदमी वेदांत की अजीबो गरीब चलते हुई आ रहा था। जहा वेदांत गिरा था वहा अपार्मेंट की सारी लाइटे क्लिकर करा रही थीं। वेदांत को ऐसा लगने लगा कि उसके साथ कुछ बहुत बडा होने वाला है। वो एक छोटे बच्चे की तरह कुट कुत कर रोना चाहता थी। पर किसी तरह उसने हिममत जुटाई उद खड़े होकर फिर दौड़ना शुरू किया। वो ये सोच रहा था कि तो को ट्रेन के एंड तक पहुंचा तो फिर उसके आगे क्या। क्या वो पकड़ लेगा फिर मुझे मार डालेगा। वेदांत भागते भागते आखिरी दबे में पहुंचा।  उसने अपने साइड में देखा कि अगला स्टेशन आ चुका था। वेदांत ने पीछे मुड़कर देखा वो आदमी वेदांत के बेहत पास था।   उस दबे की भी लाइट जल बुझ होना शुरू हो गई। ट्रेन धीरे हुई पर मेट्रो के दरवाजे अभी भी नहीं खुले थे। अब वो आदमी वेदांत के चहरे के बिल्कुल पास आगया था। वेदांत ने ट्रेन के शीशे को पीटना शुरू कर दिया। उस आदमी ने वेदांत का चेहरा पकड़ लिया। ओर एक बार फिर से वो भयानक मुस्कान उसके चहरे पर फिर आगई। ये सब अपने साथ होता देख वेदांत सुन पड़ गया। लेकिन तभी ट्रेन के दरवाजे खुलने शुरू हो गए। थोड़ी सी जगह मिलते ही वेदांत ने अपने आप को आहार खींचा और सीढ़ियों की तरह भागने लगा। उसने मुड़कर पीछे भी नहीं देखा। बस भागता रहा झाड़ू लगा रहे मेट्रो के कर्म चारी ओर पुलिस वालो के लिए भी नहीं रुका। तभी रुका जब बाहर धुध से रूपीएक सड़क पर आकर रुका। जब उसके फेफड़ों में सास आई तो वेदांत ने आखिरी बार उपमेट्रो स्टेशन पर देखा वहा मेट्रो ट्रेन वहीं खड़ी हुई थी। ओर उसके आखिरी दबे अभी भी लाइटे टीम टिमा रही थी। 

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